आसमान की अपनी घटा है। कहें, प्रकृति की ही वह छटा है। यह सोमवार की सांझ पांच बजे का समय था। औचक
आसमान में बादल घिर आए। ...और थोडे समय में ही आतुर हो गरजने भी लगे। लगा, काली घटा संग बरसेंगे अब बदरा।
...हां वह बरसे, पर संग ओले भी ले
आए। इस बार बर्फबारी सरीखी थी ओलों
की यह बरसात।दृश्य परिवर्तित हो गया।...घर का पीछवाडा और बाहर
प्रवेश द्वार के सामने के खुले मैदान में बर्फ ही बर्फ दिखाई देने लगी। जिस गति से और जिस आकार में आसमान से ओले गिरे, कहर बरपाने
वाले थे। पर धरा पर प्रकृति ने जो छटा ओलों से बिखेरी, वह अचरज देने वाली तो थी ही!
कैमरा
कहां वह सब कुछ समेट पाया जो मन अनुभूत कर रहा था!हां, कुछ तो वह जो बीत गई बर्फबारी, उसे स्थिर तो इस
यंत्र ने किया ही है...