चेरेवैती...चेरेवैती यानी चलते रहें, चलते रहें. मन को सुकून देती है

यायावरी की यादें ... कैमरे ने जो देखा लिख दिया...स्म्रति के द्र्श्यलेखों को पढ़ें

आप भी..

Photos Copyright : Dr. Rajesh Kumar Vyas


Friday, July 14, 2023

माउण्ट आबू के छायाचित्र

 अरसा हो गया, फिर से यहां आए।

इस दौरान बहुत सारी यात्राएं हुई है। माउण्ट आबू के यह छायाचित्र आपको सौंप रहा हूं...






Sunday, December 25, 2016

आमेर पहले भी कईं बार गया हूं।...पर इस रविवार जैसे दृश्य अनुभव के नये भव से साक्षात् हुआ। छायांकन में भी बहुत कुछ संजोया है। आप भी आस्वाद करें...











Thursday, August 25, 2016

अगर फिरदौस बर्रूए-जमीनस्तो, हमीनस्त, हमीनस्त, हमीनस्तो


"... क्षितिज से विदा लेता सूर्य जैसे मेरे अचरज पर मुस्करा रहा था। श्रीनगर में भोर का भी यही हाल है। पांच बजे पूरा शहर प्रकाष से नहा उठता है और सांझ भी देर से ही होती है। अभी यहीं पर बितााने है, बहुत से दिन। ड्राईवर को दूसरे दिन सोनमर्ग ले चलने के लिए कहता हूं।...गाड़ी विश्राम गृह की ओर लौट रही है। डल झील पर जमे हाउस बोट भी प्रकाष से नहा उठे हैं। पानी पर पड़ती प्रकाष की छाया, रंगो का अद्भुत दृष्य रच रही है।...

"... हर ओर, खामोषी का मंजर था। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की 21 वीं बटालियन के ऑफिस में ही बने अतिथि कक्ष की खिड़की का पर्दा हटा मैंने बाहर झांका। वातावरण में पसरी मातमी चुप्पी के बावजूद सीआरपीएफ के जवान डल झील के किनारे मुस्तैदी से अपने कर्त्तव्य को अंजाम दे रहे थे।... "

--शीघ्र प्रकाश्य यात्रा वृतांत पुस्तक से
















Saturday, April 16, 2016

सरयू तट पर ...

अयोध्या पहले भी जाना हुआ था परन्तु सरयू के इस तट को कहां देखा था! इस बार जब मार्च के अंतिम सप्ताह में कलादीर्घा के सम्पादक, कलाकार मित्र अवधेश मिश्र ने राष्ट्रीय चित्रकला शिविर को फैजाबाद में क्यूरेट किया तो  एक रोज अयोध्या के सरयू तट पर पहुंच गए। पूरे दिन वहीं रहे।
नाव की सैर करते कलाकार मित्र विनय शर्मा की पहल पर बालू रेत के बीच पहुंच गए। ... तट से दूर दिख रहे टापू सरीखे इस बालू तट पर विनय का संस्थापन भी रोचक रहा। विनय ने यहां कलाकृतियां भी​ सिरजी।











Wednesday, December 23, 2015

नमामि देवि नर्मदे

यात्राये मन को मथती है...अपने को ठीक से जान पाने का जतन कराती हुई. शिव की तलाश में अमरकंटक हो आया. नर्मदा के उद्गम स्थल. लगा, अपने होने को सार्थक करने की ओर जैसे कुछ कदम बढ़ा हूँ...आदि शंकराचार्य का नर्मदाष्टकम् पग पग पर स्मरण होता रहा "त्वदीय पाद पंकजम् नमामि देवि नर्मदे"...








Sunday, July 12, 2015

'भूतहा' भानगढ़

भानगढ़!

सत्रहवीं शताब्‍दी में निर्मित भानगढ़ 'भूतहा' कहा जाता है। उजाड़ दुर्ग! जाएंगे तो अनुमान होगा कभी यहां पूरी की पूरी सभ्यता आबाद थी. बाज़ार, सड़कें और मंदिरों के भग्न रूपों में ध्वनित शिल्प-वास्तु से जुडी भारतीय संस्कृति से भी ठोड़-ठोड़ आप साक्ष्यात होंगे. पहाड़ों से घिरे इस स्थान पर निर्मित सभी मंदिरों से मुर्तिया लोप हैं. लगता है, चोरों की भेंट चढ़ गयी. भानगढ़ तक पहुंचने का रास्ता भी तो टूटा-फूटा है...काश! इस स्थान की सार-संभाल के जतन हो पाते...

बहरहाल, वहां की यात्रा ने अनुभूतियों का नया आकाश सौंपा है. रविवार वहां परिवार सहित जाना हुआ. शीघ्र इस पर लिखूंगा...जमकर छाया-चित्रकारी भी की है सो तब तक वहां की छाया-छवियों का आस्वाद करें.










































Saturday, March 21, 2015

खजुराहो में ...

मध्यप्रदेश  के संस्कृति विभाग के आमंत्रण पर कुछ दिन पहले खजुराहो जाना हुआ। खजुराहो नृत्य उत्सव में ‘कला वार्ता’ के तहत ‘कलाओं के अंर्तसंबंधों’ पर व्याख्यान तो दिया ही, खजुराहो के शिल्प वैभव को गहरे से जिया भी. खजुराहो कलाओं की जीवंत अभिव्यक्ति ही तो है! 
कोई एक कला नहीं .कलाओं का समग्र वहां है। 
शिल्प संयोजन में जीवन से जुड़े सरोकारों की संगत! संगीत, नृत्य में ध्वनित होते पाषाण। हाँ, मिथुन मूर्तियां भी वहां है... पर खजुराहो का सच वही नहीं है। सच है कलाओं का मेल। आप मूर्तियां देखते हैं, देखते देखते औचक जहन में तमाम कलाओं का संयोजन, शिल्प पूर्णता को अनुभूत करने लगते हैं। मैंने भी अनुभूत किया। कैमरा साथ था ही सो जो कुछ अनुभूत किया, छायांकन में कुछ-कुछ व्यंजित भी हुआ ही। आप भी करें आस्वाद...