यह 1989 की याद है. तब कॉलेज में था, प्री-डिग्री में. पहले पहल राष्ट्रिय कैडेट कोर के अंतर्गत ट्रेकिंग कैंप में वंहा जाना हुआ था...श्रीनगर के पास ही पहाड़ों से घिरे सुंदर स्थल बुर्ज़ाम हमारे कैंप का पड़ाव था. करीब एक माह के दौरान ट्रेकिंग करते कश्मीर को जब देखा तो लगा सच में धरती का स्वर्ग है वह. आखिर नूरजंहा ने इसे देख कर यूँ ही थोड़े ही कहा था "अगर फिरदौस बररुए ज़मीन अस्त, हमीं नसतो हमीं नसतो,हमीं नस्त" यानी अगर दुनिया में है ज़न्नत कहीं पर; यहीं पर है, यहीं पर है, यहीं पर.
बहरहाल, कश्मीर की धरा का सौन्दर्य मन में ऐसा बसा की सन 2000 में फिर से कश्मीर की धरा पर एक सप्ताह के लिए गया. धरती के स्वर्ग को तब जो कैमरे ने संजोया, कहीं भूल से पड़ा ही रह गया. बीते दिनों जब इन छाया-चित्रों को पाया तो लगा आप से भी इन्हें साझा करूं...
बहरहाल, कश्मीर की धरा का सौन्दर्य मन में ऐसा बसा की सन 2000 में फिर से कश्मीर की धरा पर एक सप्ताह के लिए गया. धरती के स्वर्ग को तब जो कैमरे ने संजोया, कहीं भूल से पड़ा ही रह गया. बीते दिनों जब इन छाया-चित्रों को पाया तो लगा आप से भी इन्हें साझा करूं...