चेरेवैती...चेरेवैती यानी चलते रहें, चलते रहें. मन को सुकून देती है
यायावरी की यादें ... कैमरे ने जो देखा लिख दिया...स्म्रति के द्र्श्यलेखों को पढ़ें
आप भी..
Photos Copyright : Dr. Rajesh Kumar Vyas
Sunday, February 27, 2011
Friday, February 25, 2011
"तानसेन सिरमोर रसिक जन के...".
यह ग्वालियर है...तानसेन की धरा. यहीं होता है प्रतिवर्ष तानसेन समारोह. कोई तीनेक साल पहले मध्यप्रदेश की अलाउदीन खां संगीत एवं कला अकादेमी की ओर से खाकसार भी आमंत्रित हुआ था इस समारोह के लिए,बतौर कला समीक्षक.
तानसेन संगीत समारोह में हरिप्रसाद चौरसिया के साथ ही ख्यातनाम दूजे कलाकारों को भी सुना पर कहीं पढ़ा तब भी याद आ ही रहा था, "तानसेन सिरमोर रसिक जन के...". गवालियर के किल्ले पर भी चढ़ा...अतीत को निहारा वर्तमान की इस आँख से. केमरे ने लिखे द्रश्य...
Thursday, February 24, 2011
कीईनपारा में सुनते हुए पाषाण!
कीईनपारा यानी कोणार्क! उड़ीसा के समुन्द्र तट पर स्थित स्थापत्यकला का अप्रतिम मंदिर. वर्ष 2009 के 10 अक्टूबर को पूरे दिन यहीं था. रह रह कर बारिश भिगो रही थी शिल्प सोंदर्य के इस पावन धाम को. पाषाणों पर गिरती बुँदे धो रही थी, उन पर जमी धुल. कोर्णाक के भग्न सूर्य मंदिर में विचरते मैं सुनने लगा था, पथरों पर उत्कीर्ण न्र्त्यान्ग्नाओं के नुपुर की झंकार. कानों में बजने लगे थे बहुत से साज...मरदंग, बांसुरी, नुपुर और ढोलक. टप-टप गिरती बारिश की बूंदों में भीग रहा था कोणार्क...उसके सोंदर्य में तब सच में नहा रहा था यह मन....यह यायावरी ही है जो इतना कुछ देती है...
Monday, February 14, 2011
विश्व का पहला बड़ा लोकतंत्र रहा है वैशाली. कोल्हुआ ग्राम मैं हुई खुदाई से ही पर्दा उठा था विश्व के इस पहले बड़े लोकतंत्र के अतीत से. कभी 7707 भव्य प्राशाद थे यहाँ. विशिस्ट कुल भी 7707 ही थे. प्रत्येक कुल का प्रतिनिधि "राजा" कहलाता. स्वतंत्र थे यहाँ सारे ही जनपद तब. अनुपम थी वैशाली की रमणीयता. भगवान बुध की उपदेश स्थली रही है वैशाली, यहीं है उनका महारीनिर्वाण स्तूप. कोल्हुआ मैं है अशोक स्तम्भ, जिसे भीमसेन की लाठी भी कहा जातात है. आम्रपाली की कथा भी यहीं से जुडी है, भगवान् बुध ने यहीं आम्रपाली को संघ मैं प्रवेश दिलाया था. बुध के उपदेश से भिक्षुणी बन गयी नर्तकी आम्रपाली. जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर की जन स्थली कुंडा ग्राम भी यहीं वैशाली के पास ही है.
केन्द्रीय ललित कला अकादेमी द्वारा आयोजित रास्ट्रीय कला सप्ताह में कोई दो साल पहले समकालीन कला पर व्याख्यान के लिए पटना जाना हुआ था. तभी एक दिन निकाल कर वहां से कोई ५५ किलोमीटर दूर वैशाली भी हो आया था. तभी लिए थे ये छाया-चित्र...
केन्द्रीय ललित कला अकादेमी द्वारा आयोजित रास्ट्रीय कला सप्ताह में कोई दो साल पहले समकालीन कला पर व्याख्यान के लिए पटना जाना हुआ था. तभी एक दिन निकाल कर वहां से कोई ५५ किलोमीटर दूर वैशाली भी हो आया था. तभी लिए थे ये छाया-चित्र...
Thursday, February 3, 2011
बतियाता समय
हमारे आस-पास बहुत कुछ ऐसा होता है, जो अदेखा रह जाता है. या यूँ कहें, देख कर भी हम अदेखा कर देते हैं...द्रश्य संवाद करते हैं बशर्तें की हम करना चाहें. ...
काल की गति में हमारे इर्द गिर्द जो होता है उसमे जैसे समय बतियाता है, निरंतर कुछ कहता है, गुनगुनाता है ...मैंने सुना है उससे बतियाया हूँ. वक्त की दीठ में छुटे हुए को पकड़ते जो सुना, आप भी सुने..मेरे साथ गुने...
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