हमारे आस-पास बहुत कुछ ऐसा होता है, जो अदेखा रह जाता है. या यूँ कहें, देख कर भी हम अदेखा कर देते हैं...द्रश्य संवाद करते हैं बशर्तें की हम करना चाहें. ...
काल की गति में हमारे इर्द गिर्द जो होता है उसमे जैसे समय बतियाता है, निरंतर कुछ कहता है, गुनगुनाता है ...मैंने सुना है उससे बतियाया हूँ. वक्त की दीठ में छुटे हुए को पकड़ते जो सुना, आप भी सुने..मेरे साथ गुने...
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