चेरेवैती...चेरेवैती यानी चलते रहें, चलते रहें. मन को सुकून देती है

यायावरी की यादें ... कैमरे ने जो देखा लिख दिया...स्म्रति के द्र्श्यलेखों को पढ़ें

आप भी..

Photos Copyright : Dr. Rajesh Kumar Vyas


Saturday, December 17, 2011

उन्मुक्त गगन...




उन्मुक्त गगन...ढल आयी साँझ, उड़ चले पक्षी नीड़ की ओर






Sunday, November 27, 2011

आमेर में, जल महल की पाल पर


अभी कुछ दिन पहले ही पुणे से आये मित्र स्वरुप के साथ आमेर जाना हुआ था...आमेर को जितनी बार देखो, उतनी ही बार वह नया लगता है. जलमहल रास्ते में पड़ता है, आमेर से लौटे तो जलमहल की पाल पर भी कुछ समय बिताया ही. छाया-चित्रों से आप भी करें हमारी इस यात्रा का आस्वाद..








Sunday, November 6, 2011

पावन धाम शिव-बाड़ी

बीकानेर शहर से कोई 9 किलोमीटर दूर है भगवान शिव का पावन धाम शिव-बाड़ी. प्राक्रतिक सुषमा सम्पन्न इस पावन धाम में पिछले दिनों जाना हुआ तो मन किया सुकून के पलों को संजो लूँ...कैमरा  साथ था ही.  संवित सोमगिरी जी शिवबाड़ी के महंत है. उनका सानिध्य भी अनायास मिल गया...यह उनके ही प्रयास हैं की शिवबाड़ी निखर गयी है...कभी एक बावड़ी हुआ करती थी, बचपन में जाते तो उसे देखते... म्रतुन्जयी महादेव अब वंहा विराजने लगे हैं.  शिव की बेहद सुंदर प्रतिमा संवित सोमगिरीजी के प्रयासों से ही वंहा देखने को अब मिल रही है....बीकानेर जाना हो तो शिव के इस पावन धाम जरुर जाएँ, कुछ पल वंहा बिताएं, फिलहाल मंदिर की अपनी यात्रा आपके लिए इन छाया-चित्रों से ही संभव कर रहा हूँ....












Wednesday, October 19, 2011

जल में कमल

जयपुर में कुलिश स्म्रती वन  है...हरीतिमा से आच्छादित. पेड़, पक्षी, फुल, पत्तियों को देख मन करता है, निहारते रहें प्रक्रति की इस सुरम्यता को.. जल में कमल देखे, कैमरे ने हरकत की ही...





Saturday, September 24, 2011

रमणीय कानोता


जयपुर से गलता जाते हैं तो एक मोड़ कानोता बांध की और जाता है...अभी बहुत समय नहीं हुआ मित्र आशुतोष सिंह के साथ कानोता जाना हुआ.  कानोता झील का पानी और आसपास का सुरम्य वातावरण देख मन हुआ यंही बस जाए...यह भला क्या बस में है !   भले वंहा नहीं हूँ, छाया-चित्रों से आज वंहा के  पलों को फिर से जी रहा हूँ...






Sunday, June 26, 2011

अगर फिरदौस बररुए ज़मीन अस्त, हमीं नसतो हमीं नसतो,हमीं नस्त

यह 1989 की याद है. तब कॉलेज में  था, प्री-डिग्री में.  पहले पहल राष्ट्रिय  कैडेट कोर  के अंतर्गत  ट्रेकिंग कैंप में वंहा जाना हुआ था...श्रीनगर के पास ही पहाड़ों से घिरे सुंदर स्थल बुर्ज़ाम हमारे कैंप का  पड़ाव था. करीब एक माह के दौरान ट्रेकिंग करते कश्मीर को जब देखा तो लगा सच में धरती का स्वर्ग है वह. आखिर नूरजंहा   ने इसे देख कर यूँ ही  थोड़े ही कहा था "अगर फिरदौस बररुए ज़मीन अस्त, हमीं नसतो हमीं नसतो,हमीं नस्त" यानी अगर दुनिया में है ज़न्नत कहीं पर; यहीं पर है, यहीं पर है, यहीं पर.
बहरहाल, कश्मीर की धरा का सौन्दर्य मन में ऐसा बसा की सन 2000 में फिर से कश्मीर की धरा पर एक सप्ताह के लिए गया. धरती के स्वर्ग को तब जो कैमरे ने संजोया, कहीं भूल से पड़ा ही रह गया. बीते दिनों जब इन छाया-चित्रों को पाया तो लगा आप से भी इन्हें साझा करूं...

















 

Saturday, June 11, 2011

उत्कल भूमि के लिंगराज मंदिर में...


उत्कल भूमि में है देश का ख्यात लिंगराज मंदिर. भुवनेश्वर दूसरा काशी कहा जाता है...बाहर से नया अंदर से प्राचीन शहर.  भुवन के इश्वर का वास स्थल. लिंगराज में  शिव और विष्णु एक साथ हैं. विष्णु की शालिग्राम मूर्ति यहाँ है, इसीलिये तुलशी और बील यंहा चढ़ते हैं.  राष्ट्रिय विज्ञानं कांग्रेस के न्यूज़ लैटर के सम्पादन प्रयोजन से कुछ समय पहले भुवनेश्वर जाना हुआ था...तभी लिए थे यह छाया-चित्र. आप भी करें आस्वाद...