सत्रहवीं शताब्दी में निर्मित भानगढ़ 'भूतहा' कहा जाता है। उजाड़ दुर्ग! जाएंगे तो अनुमान होगा कभी यहां पूरी की पूरी सभ्यता आबाद थी. बाज़ार, सड़कें और मंदिरों के भग्न रूपों में ध्वनित शिल्प-वास्तु से जुडी भारतीय संस्कृति से भी ठोड़-ठोड़ आप साक्ष्यात होंगे. पहाड़ों से घिरे इस स्थान पर निर्मित सभी मंदिरों से मुर्तिया लोप हैं. लगता है, चोरों की भेंट चढ़ गयी. भानगढ़ तक पहुंचने का रास्ता भी तो टूटा-फूटा है...काश! इस स्थान की सार-संभाल के जतन हो पाते...
बहरहाल, वहां की यात्रा ने अनुभूतियों का नया आकाश सौंपा है. रविवार वहां परिवार सहित जाना हुआ. शीघ्र इस पर लिखूंगा...जमकर छाया-चित्रकारी भी की है सो तब तक वहां की छाया-छवियों का आस्वाद करें.