कीईनपारा यानी कोणार्क! उड़ीसा के समुन्द्र तट पर स्थित स्थापत्यकला का अप्रतिम मंदिर. वर्ष 2009 के 10 अक्टूबर को पूरे दिन यहीं था. रह रह कर बारिश भिगो रही थी शिल्प सोंदर्य के इस पावन धाम को. पाषाणों पर गिरती बुँदे धो रही थी, उन पर जमी धुल. कोर्णाक के भग्न सूर्य मंदिर में विचरते मैं सुनने लगा था, पथरों पर उत्कीर्ण न्र्त्यान्ग्नाओं के नुपुर की झंकार. कानों में बजने लगे थे बहुत से साज...मरदंग, बांसुरी, नुपुर और ढोलक. टप-टप गिरती बारिश की बूंदों में भीग रहा था कोणार्क...उसके सोंदर्य में तब सच में नहा रहा था यह मन....यह यायावरी ही है जो इतना कुछ देती है...
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